- नागपुर समाचार

65 दिवस तक निरंतर चलने वाले पैंसठिया छन्द अनुष्ठान गुरुपुर्णिमा से हुआ प्रारंभ

65 दिवस तक निरंतर चलने वाले पैंसठिया छन्द अनुष्ठान गुरुपुर्णिमा से हुआ प्रारंभ

गुरु एक दर्पण है : जैन साध्वी वृंद प. पू. श्री पदमावती जी म.सा.

नागपुर /   राष्ट्रसंत आचार्य सम्राट 1008 गुरुदेव प. पू. श्री आनंद ऋषि जी म.सा. एवं दक्षिण सिंहनी गुरुणीमैया प. पू. श्री अजितकुमारी जी म.सा. की सुशिष्याएं तपस्वी रत्ना तप चक्रेश्वरी प. पू. श्री. चंदनबाला जी म.सा., जिनशासन प्रभाविका मधुर व्याख्यानी प. पू. श्री पदमावती जी म.सा., मौनसाधिका प. पू. श्री चारुप्रज्ञा जी म.सा. “चरण”, विद्याभिलाषी प. पू. श्री सूर्यवंदना जी म.सा. “किरण”, सेवाभावी प. पू. श्री शासनवंदना जी म.सा. “सरल”, मुस्कान प्रिय प. पू. श्री वीतराग वंदना जी म.सा. “वीर” आदि ठाणा – 6 का इस वर्ष का चातुर्मास श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ नागपुर के तत्वावधान में वर्धमान नगर स्थित स्थानक के श्रीमती रजनीदेवी खुशालचंदजी रांका प्रवचन हाल में कल से प्रारंभ हो चुका है।

चातुर्मास के दुसरे दिन आज गुरुपुर्णिमा के अवसर पर साध्वी प. पू. श्री. चंदनबाला जी म.सा., प. पू. श्री पदमावती जी म.सा. के मार्गदर्शन में 65 दिवस तक निरंतर चलने वाले पैंसठिया छन्द अनुष्ठान प्रारंभ हुआ है। अनुष्ठान में प्रति दिन 65 जोड़ों सहपत्निक सम्मिलित होंगे। साध्वी प. पू. श्री चारुप्रज्ञा जी म.सा. ने पैंसठिया छन्द अनुष्ठान क्यों किया जाता है इसकी जानकारी देते हुए अपने प्रवचन में बताया कि पैंसठिया छन्द में चौबीसों तीर्थंकरों की स्तुति होती है।‌

तीर्थंकर परमात्मा के ध्यान करने से अनंत कर्मों की निर्जरा होती है। पैंसठिय छन्द स्मरण से ग्रहशांति, विघ्नहरण, संपत्ति लाभ, प्रतिष्ठा प्राप्ति आदि सर्व मनोरथ पूर्ण होते हैं। लौकिक कामनाओं के साथ साथ आध्यात्मिक सुख व शांति की प्राप्ति होती है। तीर्थंकर भगवान के नाम स्मरण से शुभ पुण्यो का उपार्जन होता है।

साध्वी प. पू. श्री पदमावती जी म.सा. ने गुरूपूर्णिमा के अवसर पर उक्त उद्गार फरमाएं की भारतीय संस्कृति में गुरु का महत्वपूर्ण स्थान है, गुरु नाम की अमोघ शक्ति ही जन जन में प्राण संचार करती है। गुरु यह नाम जितना छोटा है उतना ही भावों की अपेक्षा गहन तथा गंभीर है। गुरु हमें अज्ञान से ज्ञान की ओर, असत्य से सत्य की ओर, राग से विराग की ओर, विभाव से स्वभाव की ओर, विनाश से विकास की ओर, पतन से उत्थान की ओर ले जाते है।

गुरु की महिमा अनंत है। गुरु जिस रास्ते से गुजरते हैं संयम, तप, करुणा, दया की गाथा रेखांकित किए जाते हैं। जीवन की अंधेरी गलियों को प्रकाशमान करने वाले गुरु ही होते हैं। जैसे सुर्य के आगमन से अंधकार का संपूर्ण नाश होता है, ज्ञान के प्रकाश के सामने अज्ञान अंधकार नष्ट होता है “तमसो मा ज्योतिर्गमय” की ओर अग्रसर होता है।

गुरु एक दर्पण है जिस प्रकार मनुष्य अपना रूप रंग निहारने के लिए दर्पण में देखता है, दर्पण उसकी सुंदरता और कुरुपता का बोध कराता है उसी प्रकार गुरु भी शिष्य को उसके अस्तित्व का बोध कराते हैं और उसके भीतरी स्वरूप का दर्शन कराते हैं। गुरु का महत्व इंजीनियर के समान है शिष्य की साधना में जब कोई अड़चन या बाधा आ जाती है तो अनुभवी गुरु अपने शिष्य के जीवन हथौड़ी की एक ऐसी चोट देते हैं कि उसकी साधना की मशीन चालू हो जाती है।

जीवन की उलझी समस्याओं को सुलझाना साधना के विगणों का निराकरण करना गुरु ही जानता है। गुरु शिष्य का मार्गदर्शक, सच्चा साथी और सहारा होता है। गुरु शिष्य को ज्ञान देता है तो शिष्य भी अपना समर्पण करते हैं। अपने प्रवचन के अंत में साध्वी श्री ने कहा की “ना हमने हसके सिखा हैं, ना हमने रोके सीखा है, जो कुछ भी सीखा है, गुरु के हो किसी का है।”

प. पू. श्री वीतराग वंदना जी म.सा. ने गुरुभक्ति गीत प्रस्तुत किया। कार्यक्रम संबंधित समस्त जानकारीयों से श्री ओसवाल पंचायती नागपुर के महामंत्री राकेश गांधी ने अवगत कराया। कार्यक्रम का संचालन हंसकुमार गोलेछा ने किया।

श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ के सभापति राजेन्द्रप्रसाद बैद, उपसभापति दिलीप रांका, अध्यक्ष हस्तिमल कटारिया, महामंत्री नरेश भरुट, चातुर्मास संयोजक महेश बेतला, प्रदिप रांका ने समाज के सभी सदस्यों से संयुक्त रूप से विनंती की है की कोविड-19 के सभी नियमों का पालन करते हुए चातुर्मास के पूर्ण चार महीने के कार्यकाल में सभी धार्मिक क्रियाओं का अपने परिवार के सदस्यों के साथ लाभ लेवे।

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