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नागपुर में अंबाझरी तालाब में बने कृत्रिम छठ घाट पर पूजा के लिए उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़।

नागपुर में अंबाझरी तालाब में बने कृत्रिम छठ घाट पर पूजा के लिए उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़।

नागपुर : छठ पूजा के तीसरे दिन श्रद्धालु डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए अंबाझरी तालाब के किनारे बने कृत्रिम घाट पर उत्तर भारतिय इकट्ठा हुए. सूर्य को अर्घ्य देने के लिए अलग से अंबाझरी तालाब पर कृत्रिम घाट की व्यवस्था की गई है. छठ पूजा के मौके पर उपराजधानी नागपुर के अंबाझरी तालाब में श्रद्धालुओं का जमावड़ा दिखाई दिया. छठ पूजा के तीसरे दिन श्रद्धालुओने डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया तथा विधि विधान से छट माता की पुजा की। भारी संख्या में उत्तर भारतिय श्रद्धालु अंबाझरी तालाब पर हर वर्ष पहुंचते हैं। कई सामाजीक संस्थाएं और नागपुर महानगर पालिका की ओर से सुव्यस्था रखने का कार्य किया गया।

क्यों खास होता है छठ पर्व?
छठ पूजा का व्रत कठिन व्रतों में से एक होता है. इसमें पूरे चार दिन तक व्रत के नियमों का पालन करना पड़ता है और व्रत रखने वालों को पूरे 36 घंटे निर्जला व्रत रखना पड़ता है. छठ व्रत की शुरुआत नहाए-खाय के साथ होती है. इसके बाद दूसरे दिन खरना और तीसरे दिन अस्ताचलगामी अर्घ्य की परंपरा निभाई जाती है. कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन भी व्रती महिलाएं उपवास रखती हैं और शाम में किसी नदी या तालाब में खड़े होकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देती हैं.


छठ के पहले अर्घ्य का महत्व
छठ का पहला अर्घ्य षष्ठी तिथि को दिया जाता है. यह अर्घ्य अस्ताचलगामी सूर्य को दिया जाता है. इस समय जल में दूध डालकर सूर्य की अंतिम किरण को अर्घ्य दिया जाता है. ऐसी मान्यताएं हैं कि सूर्य की एक पत्नी का नाम प्रत्यूषा है और ये अर्घ्य उन्ही को दिया जाता है. शाम के समय अर्घ्य देने से कुछ विशेष तरह के लाभ होते हैं. इससे संतान को दीर्घायु और सुख-संपन्नता का वरदान मिलता है.

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