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नागपुर : जन्मों तक भोगना पड़ता है बुद्धिपूर्वक किए अपराध का फल  

नागपुर : बुद्धिपूर्वक किए गए अपराध का फल कई जन्मों तक भोगना पड़ता है। यह उद्गार आचार्य भरतसागर के शिष्य आचार्य पंचकल्याणकसागर ने इतवारी स्थित श्री पार्श्वप्रभु दिगंबर जैन सेनगण मंदिर के सन्मति भवन व्यक्त किए। आचार्यश्री ने कहा कि जीव का अनादिकाल से राग-व्देष मोह-माया से संबंध बना हुआ है। जीव जिस प्रकार का कर्म करता है वह वैसा ही उसका फल भोगता है। जैन दर्शन में आचार्य कुंदकुंद स्वामी ने कहा है कि सांप की वाणी पर दंडा मारने से सांप नहीं मरता उसी प्रकार जिसके अंदर कषाय, राग-व्देष मोह है वह कितना भी संयम तप आराधना करे, उसका फल उसे नहीं मिलता। बीज अच्छा है और भूमि बंजर है, तो बीज नहीं फलेगा। भूमि उपजाऊ है और बीज अच्छा नहीं है, तो भी फल नहीं आएगा, लेकिन बीज अच्छा है, भूमि उपजाऊ है, तो फल अच्छा आएगा। 

उन्होंने कहा कि एक नगर में तीन भाई अपने परिवार के साथ रहते थे। साधु उसी परिवार की तरफ आ रहे थे। बड़े भाई ने तीसरे भाई की श्रीमती को कहा कि साधु को नवधा भक्ति से पडगाहन कर आहार करा दें, लेकिन उसके मन में इतनी कषाय थी कि उसने प्रथम ग्रास में साधु की अंजुली में जहर परोसा। अब साधु अचंभे में पड़ गए। अगर अंजुली छोड़कर उसे गिरा दूं, तो अन्य जीव का घात होगा। इसलिए वह खुद ही पी गए। तीन भाई और दो श्रीमती सहित पांचों नगर छोड़कर निकल गए और दीक्षा ले ली। घोर साधना-तपस्या कर समाधि मरण को साध कर 22 सागर आयु वाले स्वर्ग में उत्पन्न हुए। जिसने जहर परोसा था वह मरकर 22 सागर आयु वाले नरक में चली गई।

समय निकल गया वह 5 जीव स्वर्ग से चय कर राजा पंडुके कुंती माद्री से 5 पांडव हुए। श्रीमती नरक से निकल कर दुर्गंधा नाम की स्त्री हुई। व्रत धारण कर, तपस्या कर जंगल में 5 पुरुष के साथ वेश्या को देखा ओैर उसके भाव खराब हो गए, तो वह राजा ध्रुपद की पुत्री द्रौपदी हुई। स्वयंवर में तीसरे पुत्र अर्जुन कोे वरमाला पहनाई और पांचों पांडवों की हुई। आनादिकाल से जीव के राग-व्देष संबंध बने है। जीव जिस प्रकार का कर्म करता है उस प्रकार का वह फल भोगता है। अपने जीवन मंे भगवान की भक्ति फल की अपेक्षा न करते हुए अच्छे भाव से करें। आत्म कल्याण के लिए अच्छे काम करें। इससे मोक्ष को पा लेंगे। 

दीप प्रज्वलन मंदिर के अध्यक्ष सतीश पेंढारी, मंत्री उदय जोहरापुरकर, पन्नलाल खेडकर, प्रचार प्रसार मंत्री हीराचंद मिश्रीकोटकर, सुधीर सावलकर, परिमल खेडकर, नरेंद्र तुपकर ने किया। मंगलाचरण सरोज मिश्रीकोटकर ने गाया। शास्त्र भेंट डाॅ. नयना संगई, सुशीला जोहरापुरकर, नंदा जोहरापुरकर, नलिनी लाड, समीक्षा जोहरापुरकर ने किया। धर्मसभा का संचालन सतीश पेंढारी ने किया। राजकुमार खेडकर, द्विपेंद्र जोहरापुरकर, रवींद्र महाजन आदि उपस्थित थे।

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