नागपुर समाचार : जैन समाज के दो संतों तेरापंथ धर्मबंध के आचार्य महाश्रमणजी और बीय पंधी दिगंबर जैनाचार्य पुलकसागरजी गुरुदेव का मिलन अमण संघीय आचार्य देवेंद्र मुनि के समाधि स्थल देवेंद्र धाम में हुआ। संतों के मिलन का यह अवसर मणिकांचन योग के समान प्रतीत हुआ। यहां तीनों संप्रदायों के आवक श्राविकाएं मौजूद रहे।
इस अवसर पर आचार्यश्री पुलकसागरजी गुरुदेव ने कहा कि काफी वर्ष पूर्व दिल्ली में मुलाकात हुई थी। तब महाश्रमणजी युवाचार्य थे और में मुनिः उदयपुर प्रवास के दौरान यह मुखद संयोग पुनः मिला। श्रावक में बावक मिलते रहते हैं। मुनि भी मिलते रहते हैं पर संत से संत बहुत कम मिला करते हैं।
उन्होंने कहा कि जब संत एक पटिये पर बैठते हैं तो समाज एक जाजम पर बैठता है। शर्ट की ऊपर की घटन गलत लग जाए तो मारी बटन गलत लगती हैं। आज का तुग जुहने और जोड़ने वाला युग है। जो इस पर विश्वास रखेगा उसी समाज, धर्म और संस्कृति का भविष्य सुरक्षित है। मिलन ऐिसा होना चाहिए कि जब भी स्मृतियां आए तो हमारे चेहरे पर मुस्कराहट आ जानी चाहिए। यदि कटुता में मिलेंगे तो जीवन भर कटुता रही रहेगी।
आचार्य महाश्रमणजी ने कहा कि विभित्र स्थानों और अलग-अलग आहार से परिपुष्ट लोग जब जैन शासन में आते हैं तो वे भाई हो जाते हैं। मुझे जब पता चला कि आचार्यश्री पुलकसागरजी भी उदयपुर में है तो मन में विचार आया कि मिलना कैसे हो। मिलने का समय बार-चार समय बदलता रहा। आखिर वो भावना पूरी हुई।




