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नागपूर समाचार : सोमनाथ ज्योतिर्लिंग रुद्र पूजन में भक्तों को श्री श्री रविशंकर ने दिया संदेश

वेदांत का ज्ञान देश की गौरवशाली परंपरा

नागपुर समाचार : प्राचीन भारत का वेद और वेदांत का ज्ञान विश्व के लिए आकर्षक है. कई देश इसके लिए प्रयासरत हैं. यह ज्ञान भारत की गौरवशाली परंपरा है. इसका उपयोग विश्व कल्याण के लिए करें. यह बात आर्ट ऑफ लिविंग के प्रणेता श्री श्री रविशंकर ने भक्तों को अपने संदेश में कही. मानकापुर इंडोर स्टेडियम में गुरुदेव श्री श्री रविशंकर, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रवींद्र चव्हाण की उपस्थिति में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग रुद्र पूजन का आयोजन किया गया.

इस अवसर पर बोलते हुए, श्री श्री रविशंकर ने कहा कि आज भारत के मध्य में सोमनाथ का अवतरण हुआ है. देशभक्ति और ईश्वर भक्ति एक ही सिक्के के दो पहलू हैं और नागपुर देशभक्ति की पावन भूमि है. उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का उल्लेख गर्व के साथ किया. सत्संग के लाभ बताते हुए रविशंकर ने कहा कि सत्संग में श्रद्धा, विश्वास और भक्ति तीनों तत्व आवश्यक हैं. यदि भक्ति का अभाव हो तो अवसाद उत्पन्न होता है. वर्तमान में अनेक अवांछनीय चीजें देखने को मिल रही है. इससे अवसाद हो सकता है. इससे बचने के लिए यदि मन में कर्म, ज्ञान और ध्यान इन तीनों तत्वों का समन्वय हो जाए तो भक्त और साधक निराश हुए बिना ज्ञान का आनंद ले सकेंगे. इस दौरान गुरुदेव ने सभी भक्तों को एकांत में ध्यान करने की सलाह दी जिससे उनका अवसाद पूर्णरूप से मिटकर उन्हे राहत दे सके.

शिवलिंग का पंचामृत से किया अभिषेक

11 दंपत्तियों और चार ब्रह्मवृंदों की उपस्थिति में मंच पर अभिषेक और रुद्र पूजन शुरू हुआ. पूरा स्टेडियम ब्रह्मवृंदों के मंत्रोच्चार से गूंज उठा. इससे भक्तों को ज्योतिर्लिंग पर हो रही अनुष्ठान प्रक्रिया का स्पष्ट अनुभव हो सका. अभिषेक के अंतिम चरण में श्री श्री रविशंकर और डॉ. मोहन भागवत पहुंचे. उन्होंने शिवलिंग का पंचामृत से अभिषेक किया, घंटियों और पुष्पों से पूजन किया और स्टेडियम में उपस्थित भक्तों के साथ महाआरती की. कार्यक्रम के अंतिम चरण में श्री श्री रविशंकर ने उपस्थित भक्तों को ओंकार का जाप और ध्यान कराया. आज 11 और कल 12 सितंबर को सुबह 8 बजे से दोपहर 12 बजे तक सभी भक्तगण ‘विज्ञान भैरवज्ञान’ के अंतर्गत सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन करेंगे.

भगवान शिव सेवा के प्रतीक : डॉ. भागवत

भारतीय संस्कृति में शिवतत्त्व प्राप्ति के एक सौ आठ मार्ग बताए गए हैं. किन्तु ये सभी मार्ग एक ही स्थान पर पहुँचते हैं. भगवान शिव ने स्वयं बिना किसी लोभ के भक्तों को सब कुछ देकर उन्हें समृद्ध करने का विचार अपनाया, कुल मिलाकर, भगवान शिव ने जगत के कल्याण के लिए निःस्वार्थ भाव से सभी की सेवा की. इसलिए, वे सेवा के साक्षात स्वरूप हैं, ऐसा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनजी भागवत ने कहा. भक्तों से संवाद करते हुए, भगवान शिव आज यहाँ दसवें स्वरूप में अवतरित हुए हैं. र हैं. उनके पूर्ण अवतार के दर्शन करने की शक्ति हममें नहीं है. परन्तु सभी को उनके सेवाभाव को अपनाना चाहिए, तथा साधना के माध्यम से भारत की ओर आशा भरी निगाहों से देखने वाले विश्व का कल्याण करने की शक्ति भी अपने अंदर धारण करनी चाहिए

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