नागपुर समाचार : नागपूर में पोले के दुसरे दिन मारबत का जुलूस निकालने की सौ साल की वर्षों की परंपरा है। पुराने लोग बताते हैं कि अन्दाजन 1881 इसवी में नागपुर के भोंसले राजवंश की बकाबाई विद्रोह कर अंग्रेजो से जा मिली। परिणामतया भोंसले के राजघराने पर बुरे दिन आ गये। कहते हैं. इसी विद्रोह के निषेधस्वरुप काली मारबत के जुलूस की पंरपरा की नीवं पड़ी।
काली मारबत उत्सव को महाभारतकालीन पुतना राक्षसी का संदर्भ है। भगवान श्रीकृष्ण जब शैशवास्था में गोकुल में माँ यशोदा के पास थे तब दुष्ट कंस ने अपनी इस राक्षसी को बाहरी तौर पर अच्छे रुप में बालकृष्ण को जहरीला दुध पिलाने भेजा था। भगवान के सामने भला ऊपरी मायावी रूप क्या कर लेता ? परंतु चूंकि पुतना को भगवान का स्पर्श हो गया था, वह मोक्ष पा गयी। अर्थात गोकुलवासी इस मोक्ष के तथ्य से अवगत नहीं थे। पुतना को भगवान के हाथों मरा हुआ देखकर वे उसे गांव के बाहर ले जाकर जला आये।
काली मारबत को जुलूस के बाद इसी भांति बाहर ले जाकर जलाया जाने की परंपरा है। गंदगी एवं बीमारियाँ चली जाती है। अनिष्ट, विकृत बातें मातबत के साथ जलकर नष्ट हो जाती है। अतः समाज के लिए अहितकारक बातें नष्ट हो यही मारबत का मुख्य प्रयोजन है।
पिछले 136 वर्षों से अक्षुण्ण रूप से काली मारबत की प्रदीर्घ परंपरा चल रही है। दंगा फसाद हो या अन्य कोई बडा संकट, मारबत का जुलूस कभी भी खंडीत नहीं हुआ। इ.स. 1942 को इस मारबत जुलूस के सिलसिले में दंगा होकर 5 लोगों की आहुति चढी थी, फिर भी मारबत का जुलूस निकाला गया था।
मारबत के दिन बच्चे, किशोर, तरुण, वृध्द, स्त्री-पुरुष सभी का रुख नेहरु पुतला स्थित मारबत की ओर रहता है। अनेकों भाविक पुष्पमालाऐं आदि से पुजन कर सुकून पाते है।
ऐसी बनावट…..
काली मारबत आकार में बहुत बडी बनायी जाती है। रंग गाढा काला होता है। बांस की कमचिया, बल्लियां, रंगीत कागज इत्यादी मारबत की रचना में प्रयुक्त होते हैं। स्थानिय कलाकार बिना कोई शुल्क लिए मात्र सेवाभाव से अनेकों दिन परिश्रम करते हुए 15 से 17 फीट ऊंची मारबत की प्रतिमा तैयार कर लेते हैं। चेहरा भी असामान्य होता है। क्रोधीत देवी के रूप में यह चेहरा गढ़ा होता है।
भीमकाय शरीर, मोटी आँखे, बडे कान, लंबी जीभ, दुग्धधारा के स्तन, लंबे लंबे बाल, लहंगा पहनी हुई यह देवीनुमा मारबत दोनो हाथपर पसारकर खड़ी की जाती है।
कुल मिला कर मारबत प्रतिमा का स्वरुप भव्य परंतु इतना विलक्षण होता है कि वह बरबस सभी का ध्यान आकर्षित कर लेती है। यह कहा जा सकता है कि मारबत के जुलूस को देखने नागपूर में रास्ते के दोनो ओर भीड़ उमड पडती हैं, वह अन्य किसी जुलूस या उत्सव में दिखायी नहीं देती।
काली मारबत का एक बहुत पुराना छोटा सा मंदीर इतवारी, नेहरु पुतला परिसर में है। बुजूर्ग बताते हैं कि मारबत को देवता के रूप में पूजने पर मनोकामना पूरी होती है। अनेकों को इसका अनुभव है । यह माना जाता है कि मारबत बीमारी व अनिष्ट बातों को अपने साथ ले जाती है। इसी प्रयोजन से मारबत के जुलूस में घोषणाएं दी जाती है।