नागपुर समाचार : हर साल की तरह ब्रह्माकुमारीज् के द्वारा वसंतनगर स्थित सेवाकेन्द्र पर पावन दिवस श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर रंगारंग कार्यक्रम बडे धुमधाम से मनाया गया। वसंत नगर में शेषनाग पर खडा मनमोहन, श्रीकृष्ण बासुरी बजाते हुए मनमोहक झॉकी बनाई गयी थी।
इस कार्यक्रम के उपलक्ष्य में आदरणीया ब्रह्माकुमारी रजनी दीदी जी, संचालिका ब्रह्माकुमारीज नागपुर, आदरणीया ब्रह्माकुमारी मनिषा दीदी जी, सह-संचालिका ब्रह्माकुमारीज नागपुर, ब्रह्माकुमार प्रेमप्रकाश भाई जी आदि के द्वारा सभी ने मीलकर श्रीकृष्ण के मनोरम झांकियों का दिप प्रज्वलन कर उद्घाटन किया। इस पावन पर्व पर आनेवाले सतयुगी महाराजकुमार श्रीकृष्ण जी को ब्रह्माकुमारी बहनोंद्वारा प्यार से बनाया हुआ भोग स्वीकार कराया गया। इस समय पर रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों काआयोजन किया गया।
इस अवसर पर आदरणीया ब्रह्माकुमारी रजनी दीदी जी ने सभी नागपूर वासियों को जन्माष्टमी की बहुत बहुत बधाई देते हुये बहुत ही सुंदर तरीके से जन्माष्टमी का रहस्य सभी के समक्ष रखा। उन्होने कहां की, यह त्यौहार स्वर्णिम दुनिया की यादगारों का त्यौहार है और यह त्यौहार हर स्थान पर मनाया जाता है। कही दो दिन तो कहीं तीन दिन और मथुरा-वृंदावन में यह उत्सव पाँच दिन तक भी मनाते
है। हम लोग अधिकतर श्रीकृष्ण के जन्म का दिन दो दिन मनाते है। पहला जन्मदिन के रूप में और दुसरे दिन दही हांडी के रुप में तथा महाप्रसाद में गोपाल काला बनाते है। युँ तो भारत का हर त्यौहार बहुत धुमधाम से मनाया जाता है और विशेष बात हर त्यौहार कि अपनी अपनी विशेषतां है।
आज सारें भारतभर में कन्हैया का गायन पूजन हो रहा। श्रीकृष्ण का दुसरा नाम मनमोहन है जो मन को मोहित करने वाला मोहन किसी में भी मोह नही रखता। हर कोई चाहता है की हम उसको गोद मे उठा ले बहन चाहेंगी कन्हैया जैसा मेरा भाई हो, पत्नियाँ चाहेगी कि कन्हैया जैसा पति हो और मैं उसकी राधा रहूँ और हर माँ चाहती है की कन्हैया जैसा मेरा बालक हो तो हर एक की चाहना श्रीकृष्ण
के प्रती अपनी अपनी होती है। जिसका नाम ही इतना सुंदर गुणवाचक और कर्तव्यवाचक रखे हुए है जो कभी किसी ने उनका नाम चेंज नही किया भले भारत का नाम चेंज करते है पर भारत में जन्म लेनेवाला पहला राजकुमार उसका नाम अभी तक भी किसी ने चेंज नही किया। श्री अर्थात ही श्रेष्ठ आकर्षणमय।
आज आकर्षण की परिभाषा कलियुगी दुनिया के हिसाब से तमोगुणी हो गई है जिसमें देह का भान है। यथाकथित कहानियों के आधार से जन्म लेते ही जन्मदात्री माँ के पास न रह कर के पालनहारी माँ के पास रहे। कुछ समय पश्चात गोकुल छोड के वुंदावन भी आए। लीलायें समाप्त करके वृंदावन से मथुरा पहूँचे। अपने दादा परदादा ओं को भी मुक्त किया फिर अपनी माता पिता को भी मुक्त किया।
बारंबार उनका परिवर्तीत रुप रहा पर किसी मे भी मोह नही रखा। केवल जगत कल्याण अर्थ उनका वह व्यक्तित्व रहा जो कहानियों में भी दिखाते है। तो ऐसा मोहन जिसके अंदर मोह का अंश मात्र भी नही। गिरीधर जिसने पहाड जैसी परिस्थितीओं को भी गोप गोपियों के साथ ले एक उंगलि पर उठा लिया। गोपाल वो नही जो गैयों का पालनहार कहलाता है, पर हुमन गौओं का पालन हार बना। गऊ माँ
जिसको कहा गया वह मॉ का स्वरूप, ममता का स्वरूप, कोमल हृदय का स्वरूप, जगत उद्धार करने का स्वरुप, ऐसे गऊ समान भोले भाले मनुष्य के पालन का प्रॅक्टिकल कर्तव्य उन्होंने किया इसलिये गोपाल कहलाए। उनकी इतनी सुंदर महिमा गायी जाती है की वे सोलह कलाओं के संपन्न थे, हर कला में वह निपूण थे। उनके हर कला में सतोप्रधानता का आकर्षण था।
कोई ऐसा गुण नही जिसकी उनके अंदर कमी हो ऐसे सर्वगुण सम्पन्न थे। संपूर्ण निर्विकारी थे। जिसमें विकारों का अंश मात्र भी नही था। गोपियों के वस्त्र चुराते हुए भी या उनके उपर 16108 पटरानियों का कलंक लगाते हुए भी पूजनिय है, सर्वोत्तम चरित्रवान जिसको संपूर्ण निर्विकारी कहा गया। उनके लिये कहां कि श्रीकृष्ण ने वस्त्र चुराये। उन्होंने कहां कि शरीर आत्मा का वस्त्र है। वस्त्र चुराना माना देहभान रुपी वस्त्र भुल आत्मा आत्मअभिमानी स्थिती में स्थित हो जाना है। उनको ऐसा आकर्षण मूर्त बनाने वाला भी परमपिता परमात्मा दिव्य ज्योती स्वरुप है। जो स्वयं इस देह भान से परे है, जो निराकार है। उनको कोई देह नही ऐसे वह परमात्मा शिव है, जो पवित्रता के सागर है। परमात्मा शिव ने अपनी पहली रचना श्रीकृष्ण को भी ऐसा पवित्र स्वरुप बनाया जो कलियुग के अंत तक भी उनकी पूजा हो रहीं है। उनका पावन नाम सुमिरन करते है। श्री राधे और श्री कृष्ण ही शादी के बाद श्रीलक्ष्मी और श्रीनारायण बनते है। सतयुग के पहले महाराजा और महारानी बनते है इसका ही यादगार अभी तक भी शादी करके कोई जोडा घर में आया तो लक्ष्मी-नारायण की जोडी आयी यह उपमा दि जाती है।
कलियुग के अंतीम चरण में परमात्मा ऐसा ज्ञान का माखन हमें खिलाते है कृष्ण की तरह गुण हमारे में आ जाते है। हमारे अंदर के देहभान की मटकियों को तोडकर श्रीकृष्ण की दुनिया में चलने के लायक हमे बनाते है। श्रीकृष्ण जैसे गुणों को कैसे हमें अपने जीवन में धारण करना है उसके लिये वर्तमान समय स्वयं परमात्मा निराकार हमें ज्ञान दे रहे है। वर्तमान समय यह घडीया हमें आवाहन कर रहीं है उसके समान बनने की।
अंत में दही हंडी का कार्यक्रम भी रखा गया था। इस कार्यक्रम का संचालन वाडी सेवाकेन्द्र की संचालिका बी. के. शारदा दीदी ने किया तथा आभार प्रदर्शन बी. के मनिशा दीदी ने किया। सभी भाई बहनों नें सुंदर झाँकियों एवं सांस्कृतिक नृत्य का आनंद लिया।