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विशेष लेख : 15 नोव्हेंबर “वार्षिक जनरल” “हवन कार्य” निमित्त विशेष लेख..

15 नोव्हेंबर “वार्षिक जनरल” “हवन कार्य” निमित्त विशेष लेख..

विशेष लेख : महानत्यागी बाबा जुमदेवजी को मिला हुआ सन्यासी के मंत्र व्दारा ४२ दिन की साधना कर उन्होने भगवान बाबा हनुमानजी की कृपा प्राप्त की। बाबा के यहाँ आनेवाले दुःखी मानव को मंत्र व्दारा फुक मारकर बाबा उनके दुख पुरी तरह दुर नही होता था। इसलिए बाबाने हनुमानजी को मार्गदर्शन करने की बिनती की। उसपर मार्गदर्शन करते हुए हनुमानजी ने बाबा को बताया की, सृष्टी रचयता एक परमेश्वर की कृपा प्राप्त करना होगा। इसके लिए हर दिन शाम को एक इस तरह पांच दिन हवन करना होगा।

हनुमानजी ने किये मार्गदर्शन नुसार बाबाने हवन करना शुरु किया वह दिन रक्षाबंधन के बाद का दिन था। पाचवे दिन हवन समाप्त होते बराबर बाबा निराकार अवस्था में आये और देहभान खो बैठे। इस तरह उन्हे विदेह स्थिती प्राप्त हुई थी। बाबा की यह स्थिती देखकर परिवार के लोग चिंताग्रस्त हुये छटवे दिन परिवार के लोगोने हवन करके कार्य की समाप्ती की।

उस समय बाबा के मुखकमलोसे चार वचन निकले। यही चार वचन निकले। यही चार वचन याने परमेश्वर प्राप्ती के चार तत्व है। दुसरे दिन परिवार के लोगो ने बाबा को बिनती की, “‘हे भगवान आप सेवक को इस विदेह स्थिती से मुक्त करो, सेवक की खुद की गृहस्थी है। बच्चा है। ” उस वक्त भगवान ने बाबा के मुखकमलों से जवाब दिया की, “अगर आपका भाई आपको इतना प्यारा था, आपको उससे इतनी हमदर्दी थी तो आपने उसे भगवान की सेवा करने क्यों लगाई, उस समय आपने उसे रोकना था। अब सेवक भगवान का हो गया, न की किसी का रहा और भगवान सेवक का हो गया है। मेरा सर सेवक का धड और सेवक का सर मेरा धड ऐसा विलीन हो गया है। इस तरह दोनो की आत्मा एक हो गई है। ” कुछ देर बाद भगवान ने बाबा के मुखकमल से फिरसे परिवार के लोगों को संबोधित शब्द निकले की, “सेवक भगवान बन गया। इसलिए सेवक एक ही समय थोडासा साधा भोजन करेंगे। जिसमें दाल, चावल, सब्जी और घी होगा। और कोई महिला घर की हो या बाहर की, उसकी छाँव सेवक पर ना पड़े। नही तो सेवक कही का नही रहेगा। जिंदा नही रहेगा।” इस प्रकार भगवान ने सेवक को दैवी शक्ती की जागृती दी।

बाबा की यह विदेह स्थिती देखकर चिंताग्रस्त हुये परिवार के लोगों को एक दिन बाबा ने मार्गदर्शन करते हुये कहाँ की, “परिवार वाले सुनो, आप सब लोग तीन माह तक भगवान से बिनती करो की हमारे भाई की यह अवस्था समाप्त कर उन्हे गृहस्थी में रखो। भगवान को दया आयेगी तो बाबा गहस्थी में रहेंगे।” बाबाने किये मार्गदर्शन नुसार परिवार के लोगों ने हर रोज सबेरे सुरज निकलने के पहले बिनती करने के कार्य शुरु किये। लगभग तीन माह बाबा विदेह स्थिती में थे। बाबा की विदेह स्थिती पुरी तरह समाप्त होकर पुरा होश मे आये। वह दिन १५ नवंबर १९४८ का था।

सन्यासी के मंत्र व्दारा परमेश्वरी कार्य करना याने सन्यासी होकर ही परमेश्वरी कृपा प्राप्त कर सकते है। उसी तरह जिन्होने कृपा प्राप्त की वह व्यक्ती मंत्र व्दारा फुक मारकर बाकी लोगों का दूःख दूर कर सकता है। गृहरस्थी में रहने वाला व्यक्ती ऐसे मंत्रोसे भगवत कृपा प्राप्त नही कर सकता। लेकीन महानत्यागी बाबा जुमदेवजी ने सन्यासी के मंत्रोच्दारा प्राप्त की हुयी परमेश्वरी कृपा अपने त्यागसे और निष्काम कर्मयोग से गृहस्थी में रहने वाले दुखी, पिडीत लोगो के कल्याण के लिए काम आकर उन्हें सुख और समाधान मिला दिया है। अगर बाबा विदेह स्थितीसे बाहर नही आते तो गृहस्थी में रहने वाले मानव को इस कृपा का लाभ नही मिलता।

इसलिए बाबा की विदेह स्थिती समाप्त होकर वे होश में आये, इसलिये याद रहे करके हर साल १५ नवबंर को मंडल के मानव मंदिर में जनरल हवन कार्यक्रम का आयोजन होता है। इसमे सहभाग होनेवाले सेवक अपने-अपने खाने के डिब्बे लेकर आते है। और हवन कार्य समाप्ती के बाद, भगवत कार्य की चर्चा बैठक होने के उपरान्त सभी सेवक सहभोजन का आनंद लेते है। तद्पश्चात सेवकों के मनोरंजन के लिए सांस्कृतीक कार्यक्रम का आयोजन रहता है। इस जनरल हवन कार्य में भी लाखों सेवक महिला पुरुष अपने-अपने डिब्बे के साथ हाजीर रहकर इस भगवत कार्य का लाभ उठाते है।

लिखने में कुछ गलती हुई हो तो में “भगवान बाबा हनुमानजी”और “महानत्यागी बाबा जुमदेवजी” से क्षमा मांगता हूं।

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