नागपुर समाचार : एमईआरसी के पुनरावलोकन आदेश द्वारा लगाए गए विनाशकारी और भ्रामक विद्युत दर वृद्धि के विरुद्ध तत्काल हस्तक्षेप आवश्यक है। एमआईडीसी इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (MIA) और महाराष्ट्र के MSME क्षेत्र अत्यंत निराशा और चिंता में है। यह बयान महाराष्ट्र विद्युत नियामक आयोग द्वारा 25 जून 2025 को जारी किए गए हालिया पुनरावलोकन आदेश के संदर्भ में है।
हालांकि इससे पहले अनेक आश्वासन दिए गए थे,यहां तक कि मुख्यमंत्री द्वारा एक ट्विट के माध्यम से 10% तक की बिजली दर में कमी का दावा किया गया था,लेकिन वास्तविकता इसके ठीक विपरीत है। इस आदेश ने न केवल इन आश्वासनों को नकार दिया है बल्कि राज्यभर की औद्योगिक इकाईयों के अस्तित्व को संकट में डाल दिया है। दर वृद्धि की वास्तविकता जुलाई 2025 से लागू संशोधित टैरिफ संरचना मार्च 2025 की तुलना में अत्यधिक अधिक है।
विभिन्न औद्योगिक श्रेणियों पर गंभीर प्रभाव
• LT कनेक्शन वाले MSMEs (3 शिफ्ट): दर वृद्धि 25-30%
• एकल शिफ्ट वाली छोटी इकाइयाँ: दर वृद्धि 20-40%
• सोलर नेट मीटरिंग वाले MSMEs: दर वृद्धि 30-35%
• बड़े पैमाने की, उच्च दक्षता वाली इकाइयाँ: दर वृद्धि 8-12%
इस अचानक पड़े वित्तीय बोझ के कारण
• KVAH बिलिंग में भारी बदलाव
• बेस टैरिफ, ToD टैरिफ और डिमांड चार्ज में प्रतिकूल बदलाव
• डिस्काउंट संरचनाओं का हटाया जाना या कमजोर किया जाना
• शून्य FAC (फ्यूल एडजस्टमेंट चार्ज) मानने की अव्यावहारिक कल्पना
टाइम-ऑफ-डे टैरिफ में बदलाव: एक नियोजन संकट
ToD (टाइम ऑफ डे) टैरिफ में मनमाने तरीके से किए गए बदलावों ने औद्योगिक ऊर्जा नियोजन को तहस-नहस कर दिया है। इससे रातों-रात ऑपरेशनल रणनीतियाँ असंगत हो गईं, जिससे उत्पादकता और प्रतिस्पर्धा पर गहरा असर पड़ा। सौर ऊर्जा निवेश अब व्यावसायिक रूप से अनुपयोगी हरित ऊर्जा को बढ़ावा देने की नीति से उलट, MERC के इस आदेश ने :
• रात्रिकालीन बैंकिंग सुविधा को समाप्त कर दिया, जो 24×7 संचालन के लिए आवश्यक थी।
• गंभीर रूप से ऊँचे ग्रिड सपोर्ट चार्ज लागू किए, जो अब कुल सौर उत्पादन पर कर की तरह लग रहे हैं। सरकारी नीति के अनुसार जिन्होंने सौर परियोजनाओं में निवेश किया, उन्हें यह आदेश प्रताड़ित करता है और हरित ऊर्जा को अव्यावसायिक बना देता है।
ग्रीन एनर्जी ओपन एक्सेस अवरुद्ध
सस्ती ऊर्जा प्राप्त करने का एकमात्र विकल्प,ग्रीन एनर्जी ओपन एक्सेस,को जानबूझकर जटिल और विलंबित कर दिया गया है, जिससे उद्योग MSEDCL की महंगी बिजली व्यवस्था के गुलाम बनकर रह गए हैं।
कानूनी प्रक्रियाओं की अनदेखी और पारदर्शिता की कमी
सबसे दुखद पहलू यह है कि
• MERC ने 28 मार्च 2025 का आदेश बिना किसी सार्वजनिक सुनवाई के उलट दिया।
• हितधारकों को परामर्श या आपत्ति दर्ज करने का कोई अवसर नहीं दिया गया।
• इससे नियामक प्रक्रिया की पारदर्शिता, विश्वसनीयता और वैधता पर गंभीर प्रश्न उठते हैं।
MERC का यू-टर्न: महाराष्ट्र की समृद्धि को झटका
25 जून का आदेश केवल टैरिफ में बदलाव नहीं है, बल्कि यह जन विश्वास के साथ विश्वासघात है। फरवरी 2025 में MYT याचिका पर भारी विरोध और रिकॉर्ड आपत्तियों (जिससे MERC की वेबसाइट भी क्रैश हो गई) के बावजूद, MERC ने कोयला लॉबी, वितरण कंपनियों और राजनीतिक प्रभावों के दबाव में यह आदेश पारित किया।
संभावित परिणाम
• बेरोजगारी में भारी वृद्धि (उद्योगों का बंद होना,अन्य राज्यों में पलायन)
• निवेश में भारी गिरावट
• राज्य के राजस्व में गिरावट
• हरित ऊर्जा और सतत विकास के लक्ष्यों को झटका
उद्योग और जनहित की मांगें
हम 25 जून के आदेश को तत्काल रद्द करने और 28 मार्च 2025 के संतुलित आदेश को पुनः लागू करने की माँग करते हैं। साथ ही:
1. सार्वजनिक परामर्श प्रक्रिया को तत्काल शुरू किया जाए और सभी रिक्त प्रतिनिधि पदों को भरा जाए।
2. नियमन प्रक्रिया को पारदर्शी और उद्योगोन्मुखी बनाया जाए।
3. आगामी 8 जुलाई को उद्योग प्रतिनिधियों का एक प्रतिनिधिमंडल जिलाधिकारी से मिलकर इस आदेश के प्रतिकूल प्रभावों पर ज्ञापन सौंपेगा
मुख्यमंत्री एवं ऊर्जा मंत्री देवेंद्र फडणवीस से इस संकट में तत्काल हस्तक्षेप कर महाराष्ट्र के औद्योगिक ताने-बाने की रक्षा करने की अपील उद्योजकों ने कल यहां आयोजित एक पत्र परिषद में की। उन्होंने मुख्यमंत्री से समृद्धि, सुशासन और औद्योगिक विकास के वचनों को निभाने की अपेक्षा की है और उम्मीद जताई है कि उद्योगों को राजनीतिक या प्रशासनिक असंगतियों का बलिदान नहीं बनने दिया जाएगा।