- नागपुर समाचार

रति चौबे द्वारा लिखित ‘मेरे शब्द – मेरे संस्मरण’ का विमोचन

नागपुर। हाल ही में विदर्भ हिंदी साहित्य सम्मेलन के उत्कर्ष सभागृह में श्रीमती रति चौबे (हिंदी महिला समिति और आल इंडिया ब्राम्हण संगठन की अध्यक्ष) रचित एक अत्यंत अविस्मरणीय रोचक प्रभावी पुस्तक ‘मेरे शब्द’ का लोकार्पण डिम्ड यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ. वेदप्रकाश मिश्रा के हस्ते तथा वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सागर खादीवाला की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। समारोह में मुख्य अतिथियों में ‘जीरो माइल फाउंडेशन’ के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ पत्रकार डॉ. आनंद शर्मा, वरिष्ठ साहित्यकारा श्रीमती इंदिरा किसलय तथा महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के सदस्य अविनाश बागड़े विशेष रूप से उपस्थित थे।

आचार्य हरीओम के द्वारा मंत्रोच्चार और आध्यात्मिक व साहित्यिकता के अनोखे संगम ने समारोह को यादगार बना दिया।
डॉ. वेदप्रकाश मिश्रा ने अपने वक्तव्य में कहा कि ‘संस्मरण कभी काल्पनिक नही होते। वे जीवन का अंश होते है और रति जी के सारे संस्मरण दिल को छूते वास्तविक हैं। संस्मरण लेखन में छायावाद की महादेवी वर्मा जी के बाद यदि वर्तमान में रति चौबे को कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी’।इस पर तालियों की गड़गड़ाहट से सभागृह गूंज उठा।


देश विदेश में चर्चित कवि प्रा. मधुप पाण्डेय ने अपनी प्रस्तावना में बताया कि ‘जीवंत हैं संस्मरण’ संस्मरणों के भाव को अपने अंतर्मन में अनुभूत कर उसे अभिव्यक्त करना एक कठिन कार्य है जिसे रति जी ने अत्यंत कुशलता से अपनी लेखनी में उतारा है। प्रस्तावना का सरस पठन श्रीमती नैनका चौबे ने किया।
वरिष्ठ साहित्यकारा विदुषी श्रीमती इंदिरा किसलय ने अपने समीक्षात्मक उद्बोधन में बताया कि ‘मेरे शब्द’ के संस्मरण अंश अंश इतिहास गंध, विशिष्ठ कालांश की रंग रेखाओं का भावभीना सौंदर्य मर्मस्पर्शी रोचक घटनाओं की परिक्रमा, पारदर्शी सत्य की बानगी, सबके बीच सरस्वती सी काव्यधारा इन संयोग से साकार हुये है। हर संस्मरण उनकी यादें, संवेदना के धरातल पर गहरी छाप छोड़ती है। 24 कैरेट स्वर्ण के समान हर संस्मरण बन पड़ा है।अनमोल है। उन्होंने पद्म सिंह शर्मा, रामवृक्ष बेनीपुरी, देवेंद्र सत्यार्थी, कन्हैया लाल मिश्र, प्रभाकर के साहित्यिक शिल्प की छुवन बताई।
डॉ. आनंद शर्मा द्वारा शुभकामनाओं के साथ अत्यंत अल्प शब्दों में बहुत कुछ कह दिया।
डॉ. सागर खादीवाला ने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि ‘संस्मरण बहुत ही बेबाक होकर लिखा है.. कहीं भी कपोल कल्पित नहीं, रति जी के संस्मरण स्मरणीय और सराहनीय है। उनका सुझाव था कि रतिजी को भविष्य में अपनी आत्मकथा के साथ प्रस्तुत होना चाहिए।
अविनाश बागड़े का संचालन अत्यंत नपातुला, सारगर्भित, रोचक और लुभावना रहा। उन्होंने संस्मरण बने दिनेश को इस कृति को समर्पित करने के रति जी के जज्बे को मर्मस्पर्शी बताया। बीच बीच में मेरे शब्द के हर संस्मरण पे अपने विचार प्रगट करते रहे।
अविशा प्रकाशन द्वारा आयोजित यह कार्यक्रम अत्यंत सफल रहा जिसमे राष्ट्र पत्रिका के संपादक श्रीकृष्ण नागपाल और वरिष्ठ पत्रकार श्रीमती पूर्णिमा पाटिल भी उपस्थित रही।
लेखिका रति चौबे ने अपने मंतव्य में बताया कि आज मैं अपने हृदय वाटिका को कोमल धरा में रोपित बीज बिखेर रही हूं जो मेरे हृदय में सालो से समाएं है। इनको सालों से थपकियां दे प्यार से सींचती आई हूं जो जलाशय कभी हृदय में सूखा ही नहीं। मेरे संस्मरण वास्तविकता लिए, मेरे जीवन के सारे अंश लिए, जो मरण तक हृदय व मस्तिष्क से नहीं जावेंगे। ये संस्मरण मेरी चिता के साथ ही भस्म होंगे। सबके लिए एक मुझे संस्मरण बनाकर .. पर ‘मेरे शब्द’ संस्मरण बन खिलते रहेंगे सदा सर्वदा। यह संस्मरण मेरे आत्मिक संस्मरण बने ‘दिनेश’ जी को समर्पित हैं।
कार्यक्रम का आभार प्रदर्शन प्रख्यात व्यंग्य शिल्पी अनिल मालोकर द्वारा माना गया। हिंदी महिला समिति उपाध्यक्ष डा चित्रा तूर द्वारा संस्था और रति जी पर प्रकाश डाला गया। उत्कर्ष चौबे ने बहुत ही रोचक ढंग से अपनी दादी के लेखन पद्धति को सबके सामने रहस्योद्घाटित किया।
कार्यक्रम के सफलतर्थ सखियों ऐशा चटर्जी, रश्मि मिश्रा, पूनम मिश्रा, रेशम मदान, चित्रा तूर, सुजाता दुबे, ममता शर्मा, नीलम शुक्ला ने अथक प्रयत्न किए।
मीना तिवारी की सरस्वती वंदना पर नृत्य प्रस्तुति, रश्मि मिश्रा और हंसा बेन का स्वागत गीत रोचक बन पड़े। उत्कर्ष चौबे ने तिलक लगा कर अतिथियों का स्वागत किया। समारोह में हिंदी महिला समिति की सभी बहनें बड़ी संख्या में उपस्थित रहीं। आल इंडिया ब्राम्हण संगठन, अखिल भारतीय ब्राम्हण मंडल और अविशा प्रकाशन द्वारा पुष्प गुच्छ देकर श्रीमती रति चौबे का सम्मान किया गया। महिला जागृति मंच और कई अन्य संगठनों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई।

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