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नागपुर समाचार : “माफ़ करना मम्मी-पापा… मैं नहीं कर पाऊंगा”, 16 साल के ख्वाहिश के आखिरी शब्दों ने हिला दिया नागपुर

नागपुर समाचार : नागपुर शहर के अंबाझरी पुलिस स्टेशन के अंतर्गत एक चौंकाने वाली घटना दर्ज की गई है। यह एक ऐसी खबर है जिसने नागपुर सहित सभी अभिभावकों को झकझोर कर रख दिया है। यह देश भर के लाखों अभिभावकों के लिए एक कड़वी सच्चाई है और अपने बच्चों पर अपेक्षाओं का बोझ डालने वाले अभिभावकों को इससे जरूर सीख लेनी चाहिए।

दरअसल, नागपुर के कैनाल रोड स्थित फिजिक्सवाला विद्यापीठ ट्यूशन क्लासेस में पढ़ने वाले 16 वर्षीय छात्र ख्वाहिश देवराम नागरे ने कल अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली. ख्वाहिश ने पंखे से लटककर आत्महत्या की. इस हृदय विदारक घटना ने एक बार फिर शिक्षा के अत्यधिक दबाव और छात्रों पर अभिभावकों की अवास्तविक अपेक्षाओं के गंभीर परिणामों को उजागर किया है।

आत्महत्या से ठीक पहले ख्वाहिश ने अपने माता-पिता के लिए एक भावुक और मार्मिक सुसाइड नोट छोड़ा. यह नोट हर उस माता-पिता के लिए एक चेतावनी है जिन्हें लगता है कि उनके बच्चे हर तरह के दबाव को झेल सकते हैं।

ख्वाहिश ने अपने नोट में लिखा था, “माफ करो आई-बाबा, नहीं झेल पाऊंगा में… डेढ़ हफ्ते से लग रहा था, मैं नहीं कर पाऊंगा… सॉरी… और धन्यवाद मुझे हर चीज़ समय पर देने के लिए… मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ आई-बाबा… लेकिन बस… अब नहीं होगा मुझसे… बाय…” 

इस नोट में उसने अपने माता-पिता से यह भी कहा कि वह उनसे मिलना चाहता था, लेकिन अब नहीं मिल पाएगा, और उनसे रोने के लिए मना किया, यह कहते हुए कि वह जो कर रहा है वह अपनी मर्जी से कर रहा है।

यह सुसाइड नोट सिर्फ ख्वाहिश के अकेलेपन और निराशा को ही नहीं दर्शाता, बल्कि उन हजारों ‘ख्वाहिशों’ का भी प्रतिबिंब है जो आज के दौर के युवा अपने दिल में दबाए हुए हैं. ख्वाहिश ने मृत्यु को गले लगाने से कुछ ही मिनट पहले अपने दोस्तों के साथ नीचे मेस में खाना खाया था. किसी को अंदाज़ा भी नहीं था कि वह अपने कमरे में हमेशा के लिए प्रवेश कर रहा है।

दोपहर करीब 11 बजे वह अपने कमरे में गया और अंदर से कुंडी लगा ली. जब काफी देर तक उसने दरवाजा नहीं खोला, तो उसके दोस्तों ने लात मारकर दरवाजा तोड़ा. सामने का दृश्य देखकर उनके पैरों तले ज़मीन खिसक गई. पूरा छात्रावास दोपहर तक सिसकियों और आहों से गूंजता रहा।

ख्वाहिश भी उन बच्चों में से एक था जो अपने माता-पिता की अवास्तविक अपेक्षाओं का बोझ ढो रहे थे. यह घटना उन सभी अभिभावकों के लिए एक ज़रूरी सबक है कि उन्हें अपने कलेजे के टुकड़े की मानसिक स्थिति और दबाव झेलने की क्षमता पर गंभीरता से विचार करना चाहिए. क्या उनका बच्चा इस गलाकाट प्रतिस्पर्धा को झेल पाएगा? क्या यह सब उसे झेलना संभव है? इन सवालों पर विचार करना अब पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरी हो गया है।

यह सिर्फ एक खबर नहीं, बल्कि एक चीख है जो हमें सोचने पर मजबूर करती है. हमें अपने बच्चों को सिर्फ अकादमिक सफलता की दौड़ में नहीं धकेलना चाहिए, बल्कि उनके मानसिक स्वास्थ्य और भावनात्मक कल्याण को भी प्राथमिकता देनी चाहिए।

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