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नागपुर समाचार : बुजुर्ग कहते थे कि यथा नाम तथा गुणा – गिरीश व्यास

नागपुर समाचार : बच्चों का नाम रखने के विषय में समाज के एक बहुत बड़े वर्ग को न जाने हो क्या गया है? लगता है जैसे वर्तमान समाज पथभ्रष्ट एवं दिग्भ्रमित हो गया है।

एक सज्जन ने अपने बच्चों से परिचय करवाया, और बताया कि मेरी पोती का नाम “अवीरा” रखा है, बड़ा ही यूनिक नाम रखा है।

यह पूछने पर कि इसका अर्थ क्या है, वे बोले कि बहादुर, ब्रेव, कॉन्फिडेंशियल, सुनते ही मेरा दिमाग चकरा गया, फिर वे बोले अब कृपा करके बतायें आपको कैसा लगा? 

मैंने कहा बन्धु अवीरा तो बहुत ही अशोभनीय नाम है नहीं रखना चाहिए। मैंने 

उनको बताया कि….

1. जिस स्त्री के पुत्र और पति न हों, पुत्र और पतिरहित (स्त्री) को अवीरा कहते है।

2. स्वतंत्र स्त्री का नाम होता है अवीरा। जिसके बारे में शास्त्रों में लिखा गया है कि

“नास्ति वीरः पुत्त्रादिर्यस्याः सा अवीरा”

उन्होंने बच्ची के नाम का अर्थ सुना तो बेचारे मायूस हो गये, बोले महोदय क्या करें अब तो स्कूल में भी यही नाम हैं बर्थ सर्टिफिकेट में भी यही नाम है, क्या करें?

आजकल लोग कुछ नया करने की ट्रेंड में कुछ भी अनर्गल करने लग गये हैं जैसे कि पुत्री हो तो मियारा, शियारा, कियारा, नयारा, मायरा तो अल्मायरा आदि। और पुत्र हो तो वियान, कियान, गियान, केयांश, रेयांश आदि आदि, और तो और जब इन शब्दों के अर्थ पूछो तो कुछ अता पता नहीं है।

और उत्तर आएगा “इट मीन्स रे ऑफ लाइट” “इट मीन्स गॉड्स फेवरेट” “इट मीन्स ब्ला ब्ला”। नाम को यूनिक रखने के फैशन के दौर में एक सज्जन ने अपनी गुड़िया का नाम रखा “श्लेष्मा”।

स्वाभाविक था कि नाम सुनकर मैं सदमें जैसी अवस्था में पहुंच गया था। सदमे से बाहर आने के लिए मन में विचार किया कि हो सकता है इन्होंने कुछ और बोला हो या इनको इस शब्द का अर्थ पता नहीं होगा तो मैं पूछ बैठा “अच्छा? श्लेष्मा! इसका अर्थ क्या होता है? 

तो महानुभाव नें बड़े ही कॉन्फिडेंस के साथ उत्तर दिया “श्लेष्मा” का अर्थ होता है “जिस पर मां की कृपा हो”, मैं सर पकड़ कर मौन बैठा रहा।

मेरे भाव देख कर उनको यह लग चुका था कि कुछ तो गड़बड़ कह दिया है, तो पूछ बैठे, क्या हुआ मैंने कुछ गलत तो नहीं कह दिया? 

मैंने कहा बन्धु तुरन्त प्रभाव से बच्ची का नाम बदलो क्योंकि श्लेष्मा का अर्थ होता है “नाक का बहता हुआ कचरा” उसके बाद जो होना था सो हुआ।

यही हालात है समाज के एक बहुत बड़े वर्ग की। फैशन के दौर में फैंसी, फटे और अधनंगे कपड़े पहनते पहनते अर्थहीन, अनर्थकारी, बेढंगे शब्द समुच्चयों का प्रयोग समाज अपने कुलदीपकों के नामकरण हेतु करने लगा है।

अशास्त्रीय नाम न केवल सुनने में विचित्र लगता है, बालकों के व्यक्तित्व पर भी अपना विचित्र प्रभाव डालकर व्यक्तित्व को लुंज पुंज करता है। इसके तात्कालिक कुप्रभाव भी हैं, साथ ही भाषा की संकरता और दरिद्रता इसका दूरस्थ कुप्रभाव है।

परंपरागत रूप से, नाम रखने का अधिकार दादा-दादी, बुआ, तथा गुरुओं का होता था। यह कार्य उनके लिए ही छोड़ देना हितकर है।

आप जब दादा दादी बनेंगे, तब यह कर्तव्य ठीक प्रकार से निभा पाएं उसके लिए आप अपनी मातृभाषा पर कितनी पकड़ रखते हैं अथवा उस पर पकड़ बनाने के लिए क्या कर रहे हैं, यह विचार अवश्य करें। अन्यथा आने वाली पीढ़ियों में आपके परिवार में भी कोई “श्लेष्मा” हो सकती है, कोई अवीरा भी हो सकती है।

शास्त्रों में लिखा है कि व्यक्ति का जैसा नाम है, समाज में उसी प्रकार उसका सम्मान और उसका यश कीर्ति बढ़ाने में वह महत्वपूर्ण कारक होता है, जैसे…

नामाखिलस्य व्यवहारहेतु: शुभावहं कर्मसु भाग्यहेतु:।

नाम्नैव कीर्तिं लभते मनुष्य-स्तत: प्रशस्तं खलु नामकर्म।

स्मृति संग्रह में बताया गया है कि व्यवहार की सिद्धि आयु एवं ओज की वृद्धि के लिए श्रेष्ठ नाम होना चाहिए।

आयुर्वर्चो sभिवृद्धिश्च सिद्धिर्व्यवहृतेस्तथा,

नामकर्मफलं त्वेतत् समुद्दिष्टं मनीषिभि:।

नाम कैसा हो, नाम की संरचना कैसी हो इस विषय में गृह्यसूत्रों एवं स्मृतियों में विस्तार से प्रकाश डाला गया है। पारस्करगृह्यसूत्र 1/7/23 में बताया गया है कि…

द्व्यक्षरं चतुरक्षरं वा घोषवदाद्यंतरस्थं।

दीर्घाभिनिष्ठानं कृतं कुर्यान्न तद्धितम्।

अयुजाक्षरमाकारान्तम् स्त्रियै तद्धितम्॥

इसका तात्पर्य यह है कि बालक का नाम दो या चार अक्षरयुक्त होना चाहिए। पहला अक्षर घोष वर्ण युक्त, वर्ग का तीसरा चौथा पांचवा वर्ण, मध्य में अंतस्थ वर्ण, य र ल व आदि और नाम का अंतिम वर्ण दीर्घ एवं कृदन्त हो तद्धितान्त न हो। तथा कन्या का नाम विषमवर्णी तीन या पांच अक्षर युक्त, दीर्घ आकारांत एवं तद्धितान्त होना चाहिए।

धर्मसिंधु में चार प्रकार के नाम बताए गए हैं 1-देवनाम 2-मासनाम 3-नक्षत्रनाम 4-व्यावहारिक नाम। 

उनमें ऐसा भी जोर देकर कहा गया है कि कुंडली के नाम को व्यवहार में बोलता नाम नहीं रखना चाहिए। जो नक्षत्र नाम होता है उसको गुप्त रखना चाहिए। क्योंकि यदि कोई हमारे ऊपर अभिचार कर्म मारण, मोहन, वशीकरण इत्यादि दुर्भावना से कार्य करना चाहता है तो उसके लिए नक्षत्र नाम की, यानि जन्म के समय के नक्षत्र अनुसार नाम की आवश्यकता होती है। जबकि व्यवहार नाम पर तंत्र का असर नहीं होता, इसीलिए कुंडली का जन्म नाम गुप्त होना चाहिए।

हमारे शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि बच्चे का नाम मंगल सूचक, आनंद सूचक, बल रक्षा और शासन क्षमता का सूचक, ऐश्वर्य सूचक, पुष्टियुक्त अथवा सेवा आदि गुणों से युक्त होना चाहिए।

शास्त्रीय नाम की हमारे सनातन धर्म में बहुत उपयोगिता है। मनुष्य का जैसा नाम होता है वैसे ही गुण उसमें विद्यमान होते हैं या विकसित होने की संभावना प्रबल होती है।

बच्चों का नाम लेकर पुकारने से उनके मन पर उस नाम का बहुत असर पड़ता है और प्रायः उसी के अनुरूप चलने का प्रयास भी होने लगता है। इसीलिए नाम में यदि उदात्त भावना होती है तो बालकों में यश एवं भाग्य का उदय अवश्य ही संभव है।

हमारे धर्म में अधिकांश लोग अपने पुत्र पुत्रियों का नाम भगवान के नाम पर रखना शुभ समझते हैं, ताकि इसी बहाने प्रभु के नाम का उच्चारण हो जाए।

भाय कुभाय अनख आलसहू।

नाम जपत मंगल दिसि दसहू॥

विडंबना यह है की आज पाश्चात्य सभ्यता के अंधानुकरण में नाम रखने का संस्कार मूलरूप से प्रायः समाप्त होता जा रहा है। सयुंक्त परिवार में रहने कि प्रथा अब लगभग अंतिम साँसे ले रही है। अन्यथा मुझे याद है कि घरों में नाम रखे जाने की भी एक विशेष रस्म होती थी जिसमे घर में दादा, दादी, बुआ अथवा उनकी अनुपस्थिति में घर का अन्य कोई वरिष्ठ, बच्चे को गोद में लेकर, श्री गणेश का स्मरण करते हुए, छोटी घंटी बजाते हुए, बच्चे के कान के पास अपना मुंह ले जाकर, उसका निर्धारित किया हुआ नाम पुकारते थे ताकि अपने नाम का पहला श्रोता वो बच्चा खुद रहे।

अब चूंकि घर में वरिष्ठों की उपस्थिति या दखलंदाजी न के बराबर है और अगर है भी, तो भी उनका सुझाया हुआ नाम, या मार्गदर्शन को सुनता ही कौन है।

फिर भी अगर नई पीढ़ी में कोई आपकी सुन रहा है तो उसे जरूर बताएं कि नाम ऐसा रखना ठीक होता है जो सकारात्मक और अर्थपूर्ण हो, उल्लासमय हो, आसानी से उच्चारित हो सके और लिखा जा सके।

बालकों के नाम ईश्वर और प्रकृति के विभिन्न सुंदर भावों का समावेश या प्रतिनिधित्व करने वाला हों, इसी में समाज की भलाई है, इसी में कल्याण है।

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