नागपुर : दुनियाभर के लोग हर साल 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाते हैं। ये ईसाइयों का सबसे बड़ा त्योहार है। इसी दिन ईसा मसीह (जीसस क्राइस्ट) का जन्म हुआ था, इसलिए इसे बड़ा दिन भी कहते हैं। इस दिन के लिए चर्च को खासतौर से सजाया जाता है। क्रिसमस के पहले वाली रात में गिरजाघरों में प्रार्थना सभा की जाती है, जो रात के 12 बजे तक चलती है। इस साल कोरोना संक्रमण के चलते कई जगहों पर ये प्रार्थना शाम को की जाएगी और कुछ जगहों पर क्रिसमस के दिन चर्च बंद हो सकता है।
पहले ही मिल गया था संकेत : माना जाता है कि यीशु के जन्म से पहले ही ये भविष्यवाणी हो गई थी कि धरती पर एक ईश्वर का पुत्र जन्म लेने वाला हैं, जो लोगों का उद्धार करेगा। यीशु के जन्म की पहली खबर गडरियो को मिली थी। कहा जाता है कि उसी समय एक तारे ने ईश्वर के जन्म का संकेत दिया था। 30 साल की उम्र तक उन्होंने कई जगहों पर घूमकर लोगों को शिक्षा दी। यीशु को अपनी मौत का पहले ही पता चल गया था। उन्होंने अपने अनुयायियों को ये बताया था। ये भी बताया जाता है कि उन्होंने क्रूस पर झूलते हुए भी मारने वाले लोगों के लिए ईश्वर से प्रार्थना की थी कि प्रभु इन्हें क्षमा कर देना, ये नादान हैं।
शांति बिना अस्तित्व नहीं : क्रिसमस शांति का संदेश लाता है। पवित्र शास्त्र में ईसा को शांति का राजकुमार कहा गया है। ईसा हमेशा अभिवादन के रूप में कहते थे कि शांति तुम्हारे साथ हो, शांति के बिना किसी का अस्तित्व संभव नहीं है। घृणा, संघर्ष, हिंसा और युद्ध का धर्म को इस धर्म में कोई जगह नहीं दी गई है। शायद यही वजह है कि क्रिसमस किसी एक देश या राष्ट्र में नहीं, बल्कि दुनियाभर में धूमधाम से मनाया जाता है।
संत निकोलस थे पहले सांता : संत निकोलस ने अपना पूरा जीवन यीशू को समर्पित कर दिया था। वे यीशू के जन्मदिन के मौके पर रात के अंधेरे में बच्चों को गिफ्ट दिया करते थे। यही संत निकोलस बच्चों के लिए सांता क्लॉज बन गए और वहां से यह नाम संपूर्ण विश्व में लोकप्रिय हो गया।
प्रेम और एकता के लिए परंपरा : क्रिसमस के दौरान भगवान की प्रशंसा में लोग कैरोल गाते हैं। इस दिन लोग अपने घरों को क्रिसमस ट्री से सजाते हैं। घर के हर एक कोने को रोशन कर देते हैं। सुबह चर्च में होने वाली प्रार्थना के बाद, लोग एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं और शुभकामनाएं देते हैं।