नागपुर समाचार : विदर्भ की साहित्यिक धरती पर अपनी सशक्त लेखनी और सामाजिक संवेदनशीलता से विशिष्ट पहचान बनाने वाले शंकर प्रसाद अग्निहोत्री जी का जीवन संघर्ष, समर्पण और संस्कार की मिसाल है।
अग्निहोत्री जी का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ, किंतु बचपन से ही उनमें साहित्य और समाजसेवा के संस्कार गहराई से बसे थे। शिक्षा के दौरान उन्होंने कविता, कहानी और निबंध लेखन की शुरुआत की। समाज की विसंगतियों, ग्रामीण जीवन की सच्चाई और मानवीय मूल्यों पर आधारित उनकी रचनाएँ आज भी पाठकों के मन को छू लेती हैं।
उन्होंने अनेक साहित्यिक संस्थाओं से जुड़कर हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया। कई वर्षों से वे संवाद, सम्मेलन और सांस्कृतिक आयोजनों के माध्यम से नई पीढ़ी को भारतीय संस्कृति और मातृभाषा के प्रति प्रेरित कर रहे हैं।
शंकर प्रसाद अग्निहोत्री जी का कहना है कि “साहित्य केवल शब्दों का संग्रह नहीं, बल्कि समाज का आईना है।”
उनकी रचनाएँ और विचार इस सत्य को जीवंत रूप में प्रस्तुत करते हैं।
उनके जीवन का उद्देश्य सदैव समाज में प्रेम, एकता और सकारात्मक सोच को बढ़ावा देना रहा है। वर्तमान में भी वे विभिन्न साहित्यिक आयोजनों में सक्रिय भूमिका निभाते हुए लोगों को अपने अनुभवों से मार्गदर्शन दे रहे हैं।
क्या आप चाहेंगे कि मैं इसमें उनके प्रमुख कार्यों, पुरस्कारों या संस्था “संवाद साहित्य सम्मेलन” में दिए गए भाषण के अंश भी जोड़ दूँ ताकि यह समाचार और समृद्ध हो जाए?




