बालाजी कथा के चौथे खिरण उत्सव व भक्त चरित्र कथा में उमड़ा भक्ति का महासागर
नागपुर/हिंगणा समाचार : दुनिया के पटल पर परिवार संस्कृति के रूप में प्रमाणित भारतीय संस्कृति को आजकल घर-घर में संकट आता दिखाई दे रहा है। विभक्त परिवार पद्धति के कारण आज घर और घर के सदस्यों के बीच संवाद लुप्त होता जा रहा है। परिवार कभी भी एक साथ भोजन नहीं करता और न ही भगवंत का नामस्मरण एक साथ करता दिखाई देता है। इसीलिए यदि दिन में एक समय का भजन और एक समय का भोजन संपूर्ण परिवार मिलकर करे, बल्कि इसे एक परंपरा बना दे, तो लुप्त हो रही भारतीय परिवार संस्कृति का संरक्षण और संवर्धन संभव होगा। इसके लिए परिवार के सदस्यों को संवाद में बाधा डालने वाले मोबाइल को एक ओर रखकर आपसी संवाद बढ़ाना आवश्यक है, ऐसा उद्बोधन बालाजी कथा के चौथे दिन कथा व्यास युगल शरणजी महाराज ने अपने कथामृत के माध्यम से किया।
चौथे दिन की कथा का शुभारंभ अखिल भारतीय मारवाड़ी सम्मेलन के अध्यक्ष पवन गोयंका एवं हितवाद समाचार समूह के राजेंद्र पुरोहित के शुभहस्ते ग्रंथ पूजन कर किया गया।
इस अवसर पर मारवाड़ी सम्मेलन के प्रदेशाध्यक्ष निकेश गुप्ता, रोहित रोंगटा, मनोज अग्रवाल, स्वप्निल जैन, सचिन पुनियानी, पंकज महाजन, माधवेन जैन, रमेश रांधड, ऋषि कुमार भाबड़ा, डॉ. प्रमोद मुंदड़ा, राहुल मांधनिया, चंपालाल पालीवाल, सोनल संजय लोया प्रमुख रूप से उपस्थित थे।
श्री बालाजी कथा के चौथे दिन का कथा पुष्प खोलते हुए कथा व्यास ने कहा कि तीर्थस्नान और विशेषकर पुष्करणी नदी के तट पर स्नान का अनन्यसाधारण महत्व है। तीर्थ अर्थात परमेश्वर के दर्शन को जाने के बाद भगवंत का प्रत्यक्ष दर्शन करना आवश्यक होता है। साथ ही समाज के समक्ष हम अपना स्वरूप किस प्रकार रखते हैं, उससे हमारे संप्रदाय, धर्म और संस्कृति का बोध समाज को होता है। सिर पर गंध, गले में वैजयंती माला, तुलसी माला – ये हमारी संस्कृति के प्रतीक हैं और हमें इनका पालन करना ही चाहिए।
आज कई जगह यह देखा जाता है कि मन में भगवान की भक्ति तो है, परंतु यदि हम उसे प्रकट करें तो समाज क्या कहेगा, इस सोच से कई भक्त प्रभु का जयजयकार करने में संकोच करते हैं। यह सच्ची भक्ति का लक्षण नहीं है। अपने जीवन को प्रभु चरणों में समर्पित कर, अपने सुख-दुख ईश्वर को बताना चाहिए, क्योंकि अन्य कोई हमारे दुख का अनुभव नहीं कर सकता। और जिसे हमारे दुख का अनुभव है, वह हमें कभी दुखी नहीं होने देगा। इसलिए भगवान के अलावा दूसरा कोई भी हमारे दुख को न समझ सकता है, न उससे मार्ग निकाल सकता है।
भगवान के बाद समाज में साधु ही हमारा सबसे अच्छा मित्र बन सकता है। अन्य मित्रों की संगति में हमें कौन-कौन से दोष लग सकते हैं यह कहना कठिन है, परंतु साधु संगति में भक्ति की प्राप्ति होती है और साधु हमेशा अपने मित्रों के कल्याण के लिए सोचते हैं। ऐसे ही भक्तिपुष्प को कथा के चौथे दिन कथा व्यास युगल शरणजी महाराज ने प्रकट कर, भक्त चरित्र और खिरण उत्सव को भक्तिमय, आनंददायी वातावरण में मनाया। अंत में आरती और महाप्रसाद के बाद कथा को विराम दिया गया।