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नागपूर समाचार : “ऑपरेशन थंडर” युवाओं में नशाखोरी एक देशद्रोह – राहुल माकणीकर, पुलिस उपायुक्त (क्राइम)

नागपूर समाचार : २६ जून को पूरे विश्व में नशा विरोधी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। सरकार ने अपनी जनकल्याणकारी भूमिका को निभाने और उसका समान औचित्य से जवाब देने के उद्देश्य से इस दिवस को मनाने का आह्वान किया, माननीय पुलिस आयुक्त, नागपुर ने एक संवेदनशील, समझदार और जिम्मेदार लोक सेवक के रूप में राज्य में पहली बार नशे के खिलाफ एक अभिनव योजना के रूप में ऑपरेशन थंडर की पहल की है और नागपुर शहर को नशा मुक्त बनाने की पहल की है। नागपुर पुलिस आयुक्त डॉ. रविंद्र कुमार सिंपल सर उन लोगों में से हैं जिनकी सांसों में जुनून समा जाता है, उनका जीवन मुख्य रूप से और मूल रूप से उसी के लिए है। २० जून से २६ जून तक उनकी अवधारणा के आधार पर नशा विरोधी सप्ताह मनाया जा रहा है।

जय समाज में दृष्ट सक्रिय हो जाते हैं और अच्छे लोग निष्क्रिय हो जाते हैं, तो विकार विचारों से अधिक प्रभावी हो जाते हैं और कई चर्षों से सामाजिक न्याय, अधिकार, सामाजिक सुधार और सामाजिक स्वास्थ्य के लिए किए जा रहे कार्य विफल हो जाते हैं। नरो के सेवन के कारण समाज की युवा पीढ़ी में भी ऐसी ही स्थिति देखने को मिलती है। कभी जिज्ञासावश, अवसाद में, कभी मित्रों के आग्रह पर, कभी गलाकाट प्रतिस्यों के समाधान के रूप में, पारिवारिक उपेक्षा के कारण,, तथा हाल के दिनों में फिल्मों में दिखाए गए अवास्तफिक दृश्यों के कारण, इनमें ये एक या अधिक कारणों से आज का युवा नशे की और आसानी से आकर्षित हो रहा है। महाराष्ट्र की बड़ी नगर पालिकाएं और शहर तथा उनमें जड़ जमा चुकी पब और बार संस्कृति युवाओं के लिए तीर्थस्थल बन गई है। यही नशा धीरे-धीरे गांवों और बस्तियों में फैलने लगा है। 

हम अखचार में पढ़ते हैं कि महाराष्ट्र की माता श्री तुलजा भवानी के पैतृक निवास से पवित्र माने जाने वाले तुलजापुर में अब नशा पाया गया है। जिन गांधीवों को राम कढ़ते थे, उनकी जगह नए आदर्श गरे जा रहे है, हराम हो चुकी व्यवस्था की राख। ऐसे समय में यदि हम ऐसी पीची तैयार करना चाहते हैं जो प्रतिक्रियावादी सत्ता की छत्रछाया में शान से नाचती हो, यदि तम अतीत के गौरव की और लौटना चाहते हैं तो हमारे सभी लोक सेवकों, जनप्रतिनिधियों, समाज सुधारकों और समाज से लगान और सरोकार रखने वाले सभी लोगों की जिम्मेदारी है कि वे युवाओं के सामने उन समाज नेताओं का इतिहास बार-बार लाएं जो इस देश में पैदा हुए, सात समंदर पार जाकर अपना नाम किया और फिर भी जीवन भर मर्यादित रहे। 

स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि युवा एक जलते हुए बर्तन का निरंतर स्पंदन है। राष्ट्र की धड़कन युवाओं की नब्ज पर ही धड़कती है। युवा को परिभाषित करते हुए विवेकानंद आगे कहते हैं कि युवा किसे कहा जाना चाहिए, अतः जिसके कंधे फौलादी हों, हड्डियाँ मजबूत हों, अंगों में शिराएँ हों और बुद्धि में विवेक हो, उसे युवा कहना चाहिए। जिसकी रगों में राष्ट्र और समाज के उत्थान की चेतना हो तथा उसके लिए कार्य करने की इच्छा और तत्परता हो, उसे युवा कहना चाहिए। युवा की सोच बिगड़ने पर दुर्गुण बढ़ते हैं। दुर्गुण बढ़ने पर विकृतियाँ पैदा होती हैं। विकृति से अहंकार पैदा होता है और ऐसी निराशा से ही अति उन्मुक्ति का भाव पैदा होता है। ऐसी मानसिक स्थिति में युवा लापरवाह और अतिवादी विचारों पर जा सकता है। यदि इसमें नशा हो तो और भी खतरनाक स्थिति पैदा हो जाती है। इस देश के कुछ राज्यों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा है और कीमत भी चुकानी पड़ी है। ऐसी स्थिति में हम निष्क्रिय समाज जो सभी सज्जन हैं, उस स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं। इसलिए इसे सही समय समझते हुए हम सभी को मिलकर इसका सामना करना होगा। 

वर्तमान में भारत दुनिया का सबसे युवा देश है। हमने हाल ही में विश्व अर्थव्यवस्था में चौथा स्थान हासिल किया है। अधिक मजबूती से प्रगति करने के लिए सबसे पहला और सबसे महत्वपूर्ण कदम युवा, जागरूक, रचनात्मक और सक्रिय होना तथा उत्पादन प्रक्रिया में सबसे आगे रहना है। व्यसन और नशे की लत के वास्तविक कारण भोग की राख, जंजीर और आकर्षण के विचार में दिखाई देते हैं। संपन्न परिवारों के बच्चों की स्वायत्तता और मध्यम वर्गीय परिवारों के बच्चों की स्वतंत्रता का अद्भुत मेल दोनों को नशे की भीड़ की ओर ले जाता है। अभिभावकों को बच्चों को भरपूर आजादी देनी चाहिए, लेकिन इस बात पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है कि वे पैसा और समय कैसे खर्च कर रहे हैं। पुलिस व्यवस्था लगातार छापेमारी करके नशीली दवाओं के व्यापार और परिवहन की श्रृंखला को नियंत्रित करने और इसे कम करने की कोशिश कर रही है, लेकिन जब तक इसमें आम जनता की भागीदारी नहीं जोड़ी जाती, तब तक यह गारंटी नहीं दी जा सकती कि यह काम पूरा हो जाएगा। 

परिवारों, स्कूलों, कॉलेजों से लेकर अनौपचारिक और औपचारिक रूप से व्यापक स्तर पर जन जागरूकता पैदा करना जरूरी है इसके साथ ही मुक्तांगन जैसी स्वयंसेवी संस्थाएं अहिंसा का व्रत लेकर नशे की लत से ग्रस्त लोगों के लिए बहुत जिम्मेदारी से काम कर रही हैं। नशे से मुक्ति के लिए यह जागृति आह्वान अगर विभिन्न स्तरों जैसे व्यक्तिगत स्तर, सामाजिक स्तर पर निरंतर जारी रहे तो स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए बहुत अनुकूल परिस्थिति निर्मित होगी। ऑपरेशन थंडर उस दिशा में एक छोटा लेकिन सकारात्मक, मजबूत लेकिन आशाजनक कदम है। और हमें यकीन है कि आप सभी राष्ट्र उत्थान के इस कार्य में हमारे साथ होंगे। मुझे इसमें से एक कविता की चार पंक्तियां याद आ रही हैं।

कोशिश कर, हल निकलेगा आज नहीं तो, कल निकलेगा। अर्जुन के तीर सा सघ, मरुस्थल से भी जल निकलेगा। मेहनत कर, पौधों को पानी दे, बंजर जमीन से भी फल निकलेगा।

ताकत जुटा, हिम्मत को आग दे, फौलाद का भी बल निकलेगा। जिंदा रख, दिल में उम्मीदों को, गरल के समंदर से भी गंगाजल निकलेगा।

कोशिशें जारी रख कुछ कर गुजरने की, जो हैं आज थमा थमा सा, चल निकलेगा।

– राहुल माकणीकर पुलिस उपायुक्त (क्राइम)

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